गणेश चतुर्थी क्यों मनायी जाती है? – सम्पूर्ण जानकारी हिन्दी में
गणेश चतुर्थी क्यों मनायी जाती है – हिंदु धर्म का गणेश चतुर्थी एक प्रमुख त्यौहार हैं. पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर आस पास के लोग बहुत ही बडी संख्या में दर्शन करने आते हैं 10 दिनों तक हिंदू धर्म के लोग भगवान गणेश जी की पूजा करते और 11 दिन बड़े ही धूम धाम से तालाब या नदी में उनकी मूर्ति का विसर्जन कर देते हैं।
इस त्यौहार को भारत के लगभग सभी राज्यों में मनाया जाता है और गणेश चतुर्थी सबसे ज्याद महाराष्ट्र के लोग बड़े ही धूम धाम से मनाते है. तो आइये दोस्तों जानते हैं की गणेश चतुर्थी क्यों मनायी जाती है।
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गणेश चतुर्थी क्यों मनायी जाती है :-
गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास शुक्ल की चतुर्थी को पूरे भारत देश में बडी धूम धाम से मनाया जाता है. कहा जाता है कि आज के दिन भगवान गणेश जी का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी क्यों मनाते हैं इसके पीछे पुराणों के अनुसार कई कहानियां भी हैं जिनमें से एक कहानी आज हम आपको बताने वाले हैं. तो आइए जानते हैं की वह कहानी कौन सी है।
कहानी :- कहा जाता है कि पुराणिक काल में एक बार महाऋषि देवव्याश जी ने महाभारत की रचना के लिए गणेश जी की अराधना कि और गणेश जी से कहा कि महाभारत की रचना कर दो। तब गणेशजी ने कहा कि अगर मैंने लिखने के लिए कलम चलानी शुरु कर दी तो मैं रुकूंगा नही यदि कलम रूक गई तो मैं लिखना बंद कर दूंगा. तब व्यास जी ने कहा प्रभु आप तो विद्वानों के विद्वान हैं और में एक साधारण सा ऋषि हूँ. आप तो बगैर सोचे समझे ही त्रुटि का निवारण कर सकतें है।
तभी आज के दिन से महाऋषि व्यास जी ने श्लोक बोलना गणपति जी ने महाभारत की रचना लिखना शुरू कर दिया था और 10 दिनों तक भाद्रमास की अंतिम शुल्क तक लिखते रहे इन 10 दिनों में गणेश जी एक ही स्थान पर बैठ कर महाभारत की रचना का कार्य करते रहे इस कारण उनका शरीर जड़वत हो गया और उनके शरीर पर धूल मिट्टी की एक परत जमा हो गई थी।
इन 10 दिनों के बाद गणेश जी ने सरस्वती नदी में स्नान करके अपने शरीर को धोकर साफ किया तभी उसी समय से गणेश चतुर्थी मनाई जाती हैं जिस दिन भगवान गणेश जी ने महाभारत की रचना लिखना शुरू किया तब भाद्रपद मास की शुल्क तृतीया तिथि थी इसलिए हर साल उसी तिथि को गणेश जी कि स्थापना की जाती है और 10 दिनों तक उनकी पुजा करके गणेश चतुर्थी मनाई जाती हैं। अब आप आगें जानोगे गणेश चतुर्थि की व्रत कथा के बारे में.
गणेश चतुर्थी व्रत कथा :-
कहते हैं कि इस दिन जो भी व्रत करता उस पर गणेश जी प्रसन्न होकर उसके सारे दुःख हरके दूर करते हैं और सुख सम्पत्ति प्रदान करते हैं. धार्मिक द्रष्टि कोण से देखा जाए तो गणेश चतुर्थी व्रत की कई कथाएं हैं जिनमें से एक आज हम आपको बताने वाले हैं।
एक समय की बात है जब देवताओं पर संकट आया तो उसके निवारण के लिए सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे उस समय भगवान शिव और माता पार्वती अपने दोनों पुत्रों के साथ बैठे थी. तब देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव जी ने अपने दोनों पुत्रों से प्रश्न किया की देवताओं की मदद करने के लिए कौन जाएगा तो दोनो पुत्रो ने एक साथ मिलकर हाँ कहा।
तो शिवजी सोच में पड़ गए कि किसको भेजे तब भोलेनाथ जी को एक उपाय सूझा और शिवजी ने अपने दोनो पुत्रो तथा कार्तिकेय और गणेश जी से कहा जो भी इस पूरे के ब्राह्मण की सात परिक्रमा पूरी करके आएगा वही देवताओं के संकट का निवारण करने को जायेगा।
इतनी बात सुनकर कार्तिकेय अपने वाहन पर बैठ कर ब्राह्मण की परिक्रमा करने को चले गए तभी गणपति बप्पा सोचने लगे कि में एक चूहा पर बैठकर ब्राह्मण के सात परिक्रमा कैसे लगा पाउँगा।
फिर गणेश जी बडी चतुराई दिखाते हुए अपने माता पिता तथा भगवान शिव और माता पार्वती देवी के चरणों की सात परिक्रमा पूरी करके बैठ गए और कार्तिकेय के आने का इंतजार करने लगे. यह सब देखकर देवताओं के साथ शिवजी तंग रह गए की आखिर परिक्रमा करने की वजह बैठ क्यों गए।
तभी भगवान शिव ने गणेश जी से परक्रीमा न करने का कारण पूछा तो गणेश जी ने कहा कि माता पिता के चरणों में ही सब लोक होते हैं ये जबाव पाकर शिवजी बड़े प्रशन्न हुए और देवताओं की मदद करने का कार्य गणेश जी शोंप दिया और साथ ही ये वरदान दिया कि हर चतुर्थी को जो भी तुम्हारी पूजा और उपवास करेगा उसके सारे दुःख और कष्ठ दूर होगे। उसके घर में शुख-शांति तथा संपत्ति का आगमन होगा। इसलिए गणेश चतुर्थी का व्रत करना शुरू हुआ था।
गणेश चतुर्थी कब से मनाते हैं :-
गणपति उत्सव सन 1893 में शुरू हुआ था इतना ही नहीं 1893 के पहले भी मनाते थे मगर अपने घर तक ही सीमित था अपने घर में ही गणपति उत्सव का त्यौहार मनाते थे।
गणेश चतुर्थी की शुरूआत महाराष्ट्र के लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की थी इसलिए महाराष्ट्र में गणपति उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है गणेश चतुर्थी उत्सव शुरू करने में बाल गंगाधर तिलक को काफी मुश्किल का और विरोध का सामना करना पड़ा था. अंग्रेजो से भारत को आजाद करने के लिए गणेश उत्सव सार्वजनिक एक जुट करने का जरिया बनाया था।
गणेश चतुर्थी का महत्त्व :-
कथा और पुराणों के अनुसार भगवान गणेश जी को ज्ञान और सौभाग्य का माना जाता है कहते हैं की किसी भी शुभ काम को करने से पहले उनका आर्शीवाद लेना एवं उनकी पूजा करना सही होता है। उनका आर्शीबाद लेने के लिए उनके भक्तों को गणपति बप्पा मोरया का जाप करना चाहिए इसके अलावा लोग भगवान गणेश जी के सम्मान में उपवास रखते हैं और अपने जीवन को खुश-हाल रखते हैं। गणेश हिंदू धर्म में सबसे पहले प्रमुख देवताओं में से एक हैं गणेश जी गणेश चतुर्थी को जन्म हुआ था।
एक बार देवी पार्वती जी को एक गुफा में स्नान करने के लिए जाना था लेकिन द्वार पर पहरा देने के लिए कोई भी नही था तो देवी पार्वती जी ने चंदन के पृष्ट का उपयोग करके गणेश जी को बनाया और कहा की मैं भीतर स्नान करने जा रही हु किसी को भी अंदर प्रवेश मत करने देना। तो गणेश जी ने अपने कार्य को बखूबी निभाया और किसी को भी द्वार के अंदर नहीं जाने दिया यहां तक की उन्होंने अपने पिता भगवान शिवजी को भी द्वार प्रवेश नहीं करने दिया
जिससे कारण भगवान शिवजी को क्रोध आया और गणेश जी का शिर काट दिया और उनका वध कर दिया यह देखकर देवी पार्वती बहुत दुखी हुईं और उनको दुखी देखकर भगवान शिव जी ने अपने पुत्र को पुनः जीवित कर दिया भगवान गणेश का शिर बदल कर एक हाथी का शिर लगा दिया था।
कैसा लगा आप सभी को ये लेख जिसमें हमने आपको बताया की गणेश चतुर्थी क्यों मनायी जाती है. तो इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपको पता चल गया होगा की गणेश चतुर्थी क्यों और कब मनायी जाती है। इस लेख पर आप अपने विचार प्रकट जरूर करें। धन्यवाद Google
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